राजस्थान में दुर्ग स्थापत्य कला
राजस्थान किलों का प्रदेश
है जहाँ प्रत्येक नगर और कस्बे में किलों व गढ़ों के अवशेष आज भी देखे जा सकते
हैं। सम्पूर्ण देश में माहराष्ट्र व मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में सर्वाधिक
दुर्ग मिलते हैं। यहाँ राजाओं, सामन्तों ने अपने निवास
के लिए सुरक्षा के लिए, सामग्री संग्रहण के लिए,
आक्रमण के समय अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने के
लिए पशु-धन बचाने के लिए तथा संपत्ति को छिपाने के लिए दुर्ग बनवाये। दुर्ग
निर्माण में राजस्थान के शासकों ने भारतीय दुर्ग-निर्माण कला की परम्परा का
निर्वाह किया था। अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अलग-अलग दुर्गों का निर्माण
किया जाता है। शुक्र नीति में राज्य के सात महत्वपूर्ण अंगों में दुर्ग स्थापत्य
को एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। शुक्र नीति में नौ तरह के दुर्ग- एरण, पारिख, पारिध, वन दुर्ग, धन्व दुर्ग, जल दुर्ग, गिरि दुर्ग, सैन्य दुर्ग तथा सहाय दुर्ग बताये गये हैं।
राज्य में उक्त सभी प्रकार के दुर्ग अवस्थित हैं जो कि निम्न हैं-
- गिरि दुर्ग- वह दुर्ग जो किसी उच्च गिरि (पर्वत) पर स्थित होता है। मेहरानगढ़ (जोधपुर), चित्तौड़ दुर्ग, रणथम्भौर दुर्ग, जयगढ़ (आमेर) आदि गिरि दुर्ग के प्रमुख उदाहरण हैं।
- औदक दुर्ग- वह दुर्ग जो विशाल जल राशि से घिरा हुआ हो जैसे- गागरोण दुर्ग।
- धान्वन दुर्ग- मरूभूमि में बना हुआ दुर्ग धान्वन दुर्ग कहलाता है। जैसे- जैसलमेर दुर्ग।
- पारिख दुर्ग- वह दुर्ग जिसके चारों ओर बड़ी खाई हो जैसे भरतपुर व बीकानेर का जूनागढ़ दुर्ग।
- पारिध दुर्ग- जिन दुर्गों के चारों ओर बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो वे पारिध दुर्ग कहलाते हैं।
- वन दुर्ग- सघन वन में बने दुर्ग वन दुर्ग कहलाते हैं। जैसे- सिवाना का दुर्ग इसी श्रेणी में आता है।
- सैन्य दुर्ग- सैन्य दुर्ग उस दुर्ग को कहते हैं जिसमें युद्ध की व्यूह रचना में चतुर सैनिक रहते हों जिसके कारण जो अभेद्य हो।
- सहाय दुर्ग- सहाय दुर्ग उसे कहते हैं, जिसमें शूरवीर एवं सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते हैं।
- एरण दुर्ग- वह दुर्ग जिसके मार्ग खाई, काँटों व पत्थरों से दुर्गम हों। शुक्रनीति सार में सैन्य दुर्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया है।
राजस्थान के प्रमुख दुर्ग
चित्तौडग़ढ़ दुर्ग (चित्तौड़ का किला)-
- वीरता, त्याग, बलिदान का प्रतीक चित्तौडग़ढ़ दुर्ग स्थापत्य कला की दृष्टि में भी विशिष्ट महत्व रखता है। इस दुर्ग के बारे में लोकोक्ति प्रचलित है, ‘‘गढ़ तो चित्तौड़ बाकी सब गढ़ैया’’।
- गंभीरी व बेड़च नदियों के संगम पर स्थित इस दुर्ग को ‘राजस्थान का गौरव’ तथा ‘किलों का सिरमौर’ कहा जाता है।
- वीर विनोद ग्रंथ के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) ने करवाया तथा उसी का अपभ्रंश चित्तौड़ है।
- मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी से आठवी शताब्दी में गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने इस पर अधिकार कर लिया था।
- 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने रावल रतनसिंह को मारकर इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया तथा अपने बेटे खिज्र के नाम पर इस दुर्ग का नाम खिज्राबाद रख दिया गया।
- यह दुर्ग 616 मीटर ऊँचे एक पठार पर स्थित है जिसे मेसा का पठार कहते हैं।
- इस दुर्ग में अदबदजी (अद्भुत जी) का मंदिर, रानी पद्मिनि का महल, गोरा व बादल के महल, कालिका माता का मंदिर, सुरजकुण्ड, जयमल और फताजी की हवेलियाँ, समिधेश्वर का मंदिर, कुंभश्याम मंदिर, मीराबाई का मंदिर, तुलजा माता का मंदिर, सतबीस देवरी जैन मंदिर, शृंगार चंवरी का मंदिर इत्यादि स्थित हैं।
- चित्तौड़ के किले में प्रवेश के लिए सात प्रवेश द्वार बने हुए हैं जो क्रमश: पांडुपोल, भैरवपोल, हनुमान पोल, गणेशपोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल और रामपोल हैं।
- यह राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है।
गागरोन का किला-
- गागरोन का किला दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में झालावाड़ में आहु तथा कालीसिंध के संगम स्थल पर स्थित है।
- तीन तरफ से नदियों से घिरा यह किला ‘जल दुर्ग’ की श्रेणी में आता है। गागरोन पर पहले परमार राजपूतों का अधिकार था जिन्होंने इस किले का निर्माण करवाया था। इस किले को डोडग़ढ़ या धूलरगढ़ भी कहते हैं।
- महमूद खिलजी ने इस किले में एक और कोट का निर्माण करवाकर इस दुर्ग का नाम मुस्तफाबाद रखा।
- गागरोन दुर्ग में तीन प्रवेश द्वार- सूरजपोल, भैरवपोल तथा गणेशपोल हैं।
- संत पीपा की छतरी, सूफी संत मिठेशाह (संत हमीदुद्दीन चिश्ती) की दरगाह तथा औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा इसी दुर्ग में स्थित है।
कुंभलगढ़ दुर्ग-
- कुंभलगढ दुर्ग राजस्थान का चित्तौडग़ढ़ के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण दुर्ग है। कुंभलगढ़ दुर्ग 36 किमी. लम्बे परकोट से सुरक्षित घिरा हुआ है जो चीन की महान् दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है।
- इसकी सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते हैं। महाराणा कुंभा द्वारा दुर्ग स्थापत्य के प्राचीन भारतीय आदर्शों के अनुरूप निर्मित कुंभलगढ़ गिरि दुर्ग का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- इस दुर्ग का प्रमुख शिल्पी मंडन था। इस दुर्ग को कुंभलमेर या कुंभलमेरू भी कहा जाता है। कुंभलगढ़ का अभेद्य किला राजसमंद जिले में सादड़ी गाँव के पास अरावली पर्वतमाला के एक उतुंग शिखर पर अवस्थित है। मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित प्राचीन दुर्ग के अवेशेषों पर 1448 ई. में महाराणा कुंभा ने इस दुर्ग की नींव रखी थी।
- इसी दुर्ग में उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ एवं राणा प्रताप का जन्म हुआ था। इसके ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास स्थान है जिसे कटारगढ़ कहते हैं। यह बादल महल के नाम से प्रसिद्ध है जो महान् यौद्धा महाराणा प्रताप का जन्म स्थल है। कुंभलगढ़ को मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी भी कहा जााता है।
तारागढ़ का किला, बूंदी-
- बूंदी का तारागढ़ का किला पर्वत की ऊँची चोटी पर स्थित होने के फलस्वरूप धरती से आकाश के तारे के समान दिखलाई पडऩे के कारण तारागढ़ के नाम से प्रसिद्ध है।
- इस किले का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में राव बरसिंह ने मेवाड़, मालवा और गुजरात की ओर से संभावित आक्रमणों से बूंदी की रक्षा करने के लिए करवाया था।
- इस दुर्ग में छत्र महल, अनिरूद्ध महल, रतन महल, बादल महल और फूल महल प्रमुख हैं। विदेशी पत्रकार रूडयार्ड किपलिंग के शब्दों में ‘‘यह मानव निर्मित नहीं बल्कि फरिश्तों द्वारा बनाया गया लगता है।’’
नाहरगढ़ का किला-
- इस दुर्ग का निर्माण सवाई जयसिंह ने 1734 ई. में मराठा आक्रमणों से बचाव के लिए करवाया था। भव्य और सुदृढ़ दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान है। इसे ‘सुदर्शनगढ़’ भी कहते हैं। इस किले का नाम नाहरगढ़ नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा।
- यहाँ स्थित अधिकांश राजप्रासादों का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय तथा उनके बाद सवाई माधोसिंह ने अपनी नौ पासवानों के नाम पर एक जैसे नौ महलों का निर्माण करवाया था।
भैंसरोडग़ढ़ का किला (चित्तौडग़ढ़)-
- भैंसरोडग़ढ़ का किला चम्बल और बामनी नदियों के संगम स्थल पर स्थित है। इस किले का निर्माण भैंसाशाह और रोड़ा चारण ने करवाया था।
तारागढ़ (अजमेर)-
- अजमेर में अरावली की पहाडिय़ों पर स्थित तारागढ़ दुर्ग को गढ़ बीठली तथा अजयमेरू भी कहते हैं। चौहान शासक अजयपाल ने 1113 ई. के आसपास इस दुर्ग का निर्माण करवाया था तथा अजमेर नगर की स्थापना की थी।
- मेवाड़ के महाराणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज ने इस दुर्ग में कुछ महल बनवाये तथा इसका नाम अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर तारागढ़ रखा।
- विलियम बैंटिक ने इसे ‘दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर’ की संज्ञा दी है। इस दुर्ग के भीतर संत मीरा साहब की दरगाह (मीर सैयद हुसैन खिंगसवार) एवं इसमें स्थित ‘घोड़े की मजार’ है।
आमेर दुर्ग, जयपुर-
- कछवाहा वंश के धौलाराय (दुल्हेराय) के पुत्र काकिलदेव ने 1036 ई. में आमेर के मीणा शासक ‘भुट्टो’ से यह दुर्ग छीना था। 1707 में मुगल सम्राट बहादुरशाह प्रथम ने कुछ समय के लिए आमेर को हस्तगत कर लिया था तथा इसका नाम मोमीनाबाद रखा था।
- आमेर के राजमहलों में सर्वाधिक प्रसिद्ध और चर्चित भव्य शीशमहल है जिसमें छत और दीवारों पर कांच की जड़ाई का अत्यंत सुंदर बारीक काम हुआ है।
- विशब हैबर ने आमेर के महलों की सुंदरता के बारे में कहा है कि ‘मैंने क्रेमलिन में जो कुछ देखा है और अलब्रसा के बारे में जो कुछ सुना है उससे भी बढक़र ये महल हैं।’
- इस दुर्ग में स्थित जलेब चौकख् सिंह पोल, गणेश पोल, शिला देवी का मंदिर, दीवाने आम, दीवाने खास, दिलखुशमहल, बुखारा गार्डन, रंग महल, शीश महल, सुहाग मंदिर, बाला बाई की साल, मानसिंह महल इत्यादि प्रसिद्ध हैं।
- गणेश पोल इस दुर्ग का प्रवेश द्वार है जिसका निर्माण महाराजा सवाई जयङ्क्षसह द्वारा करवाया गया। मिर्जा राजा जयसिंह ने यहाँ केसर बाग बनवाया जो अत्यंत दर्शनीय है।
जयगढ़ दुर्ग (जयपुर)-
- जयपुर राज्य का सर्वाधिक दुर्गम गढ़ जयगढ़ था। इसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने करवाया था। इसका परिवर्धन सवाई जयसिंह द्वितीय ने किया था।
- महाराजा सवाई जयङ्क्षसह के अनुज विजयसिंह (चीमाजी) को इसी दुर्ग में कैद रखा गया था।
- इसके तीन प्रमुख प्रवेश द्वार हैं- डूंगर दरवाजा, अर्वान दरवाजा, भैंरू दरवाजा।
- जयगढ़ के प्रमुख भवनों में जलेब चौक, सुभट निवास (दीवान-ए-आम), खिलबत निवास (दीवान-ए-खास), लक्ष्मी निवास, ललित मंदिर, विलास मंदिर, सूर्य मंदिर, आराम मंदिर, राणावतजी का चौकर आदि है जो हिन्दू स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- जयगढ़ के भीतर एक लघु अंत: दुर्ग भी बना है जिसे विजयगढ़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस किले में स्थित ‘दिया बुर्ज’ सबसे ऊँचा है। इस दुर्ग में प्रांगण में जयबाण नामक तोप है जिसका निर्माण 1720 ई. में जयगढ़ के शस्त्र कारखाने में हुआ था। यह एशिया की सबसे बड़ी तोप है। संभवत: संपूर्ण भारत में यही एक दुर्ग है जहाँ तोप ढालने का संयंत्र लगा हुआ है।
- यह दुर्ग आमेर के कच्छवाहा शासकों को संकटकाल में सुरक्षा प्रदान करता था।
स्वर्णगिरि, जालौर दुर्ग-
- इस दुर्ग को सोनलगढ़, कनकाचल, सुवर्णगिरि इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
- सूकड़ी नदी के किनारे स्थित इस दुर्ग का निर्माण गुर्जर नरेश नागभट्ट ने करवाया था।
- जब जोधपुर की गद्दी के लिए भीमसिंह और मानसिंह के बीच उत्तराधिकार का संघर्ष चल रहा था तब मानसिंह ने इसी दुर्ग में शरण ली थी।
- वर्तमान में इस दुर्ग में राजा मानसिंह के महल, बीरमदेव की चौकी, संत मलिकशाह की दरगाह तथा तीन जेन मंदिर स्थित हैं।
मेहरानगढ़ (गिरि दुर्ग), जोधपुर-
- जोधपुर नगर की उत्तरी पहाड़ी चिडिय़ाटूंक पर बना मेहरानगढ़ दुर्ग पार्वत्य दुर्ग की श्रेणी में आता है। इसे मयूरध्वजगढ़, मोरध्वजगढ़ तथा गढ़ चिंतामणी कहा जाता है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित मेहरानगढ़ के महल राजपूत स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- मयूराकृति का हाने के कारण जोधपुर के किले को मयूरध्वजगढ़ भी कहते हैं।,
- इस दुर्ग के दो बाह्य प्रवेश द्वार हैं- जयपोल तथा फतेहपोल। जयपोल का निर्माण जोधपुर के महाराजा मानङ्क्षसह ने करवाया था।
- जोधपुर दुर्ग का एक अन्य प्रमुख प्रवेश द्वार लोहापोल है। लोहापोल के साथ दो पराक्रमी क्षत्रीय यौद्धाओं-धन्ना और भींवा के पराक्रम और बलिदान की यशोगाथा जुड़ी है।
- महाराजा मानसिंह द्वारा स्थापित ‘पुस्तक प्रकाश’ नामक पुस्तकालय आज भी कार्यरत है।
- इस दुर्ग में कई प्राचीन तोपें-किलकिला, शंभूबाण, गजनीखान, जमजमा, नुसरत, गुब्बार, मीरबख्श तथा गजक इत्यादि प्रमुख हैं।
- इस दुर्ग में कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी, तख्त विलास, दौलतखाना, चोखेलाव महल, बिचला महल, सिलहखाना, तोपखाना उल्लेखनीय है।
- इस दुर्ग के भीतर राठौड़ों की कुलदेवी नागणेची का मंदिर भी विद्यमान है।
मांडलगढ़ दुर्ग, भीलवाड़ा-
- मांडलगढ़ मेवाड़ के प्रमुख गिरि दुर्गों में से एक है, जो अरावली पवर्तमाला की एक विशाल उपत्यका पर स्थित है।
- यह बनास, बेड़च और मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम के समीप स्थित होने से कौटिल्य द्वारा निर्देशित आदर्श दुर्ग की परिभाषा को भी चरितार्थ करता है।
- यह मण्डलाकार अर्थात् गोलाई में बना हुआ है इसलिए इसे माण्डलगढ़ कहते हैं। इस दुर्ग का निर्माण शाकंभरी के चौहानों ने 12वीं शताब्दी में करवाया था।
- विजयमंदिर का किला (गिरि दुर्ग), बयाना भरतपुर-
- इस दुर्ग का निर्माण यादव वंशी राजा विजयपाल ने मानी पहाड़ी पर 1040 ई. के लगभग करवाया था।
- बयाना दुर्ग के भीतर लाल पत्थरों से बना एक ऊँचा लाठ या स्तंभ है, जो भीमलाट के नामसे प्रसिद्ध है।
रणथंभौर दुर्ग, सवाईमाधोपुर-
- रणथंभौर का दुर्ग सवाईमाधोपुर से लगभग 9 किमी. दूर अरावली पर्वत मालाओं से घिरा हुआ एक पार्वत्य दुर्ग एवं वन दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण चौहान शासक रणथान देव चौहान ने करवाया था।
- अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में लिखा है कि ‘अन्य सब दुर्ग नंगे हैं जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।’
- नौलखा दरवाजा इसका प्रवेश द्वार है।
- इस दुर्ग परिसर में हम्मीर महल, रानी महल, हम्मीर की कचहरी, सुपारी महल, जौरा-भौंरा, 32 खंभों की छतरी, रनिहाड़ तालाब, जोगी महल, पीर सदरूद्दीन की दरगाह, लक्ष्मीनारायण मंदिर, जैन मंदिर तथा भारत प्रसिद्ध गणेश मंदिर स्थित है।
बाला किला, अलवर-
- जो दुर्ग कभी शत्रुओं द्वारा जीते नहीं गए हों, उन्हें बाला किला कहा जाता है। इस दुर्ग का निर्माण हसन खाँ मेवाती ने संवत् 928 में करवाया था।
सिवाणा दुर्ग (गिरि दुर्ग), बाड़मेर-
- बाड़मेर में स्थित छप्पन का पहाड़ नामक पर्वतीय क्षेत्र में स्थित सिवाणा दुर्ग की स्थापना 954 ई. में परमार वंशीय वीरनारायण ने की थी।
- इसका प्रारंभिक नाम कुम्थान था। यह राजस्थान के दुर्गों में वर्तमान में सबसे पुराना है। इस पर कुमट नामक झाड़ी बहुतायत से मिलती थी जिससे इसे कुमट दुर्ग भी कहते हैं।
- जोधपुर के राठौड़ नरेशों के लिए भी यह दुर्ग विपत्ति काल में शरणस्थली के रूप में काम आता था।
- 1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग को जीतकर उसका नाम खैराबाद रख दिया था।
दौसा का दुर्ग (गिरि दुर्ग)-
- दौसा दुर्ग लगभग 1000 साल पुराना है। इसका निर्माण बडग़ुर्जरों ने करवाया था। इसकी आकृति सूप (छाजले) के समान है। बडग़ूर्जरों से यह दुर्ग कच्छवाहों ने छीन लिया था।
शेरगढ़ दुर्ग, धौलपुर-
- धौलपुर के शेरगढ़ किले का निर्माण जोधपुर के राव मालदेव ने करवाया था। शेरशाह सूरी ने 1504 ई. में इस दुर्ग को पुननिर्मित करवाया था तभी से इसका नाम शेरगढ़ पड़ गया।
अचलगढ़ (गिरि दुर्ग), सिरोही-
- 900 ई. के आस-पास इस दुर्ग का निर्माण परमार राजपूतों द्वारा करवाया गया। इस दुर्ग के बारे में यह जनश्रुति है कि महमूद बेगड़ा जब अचलेश्वर के नन्दी सहित अन्य देवताओं की प्रतिमाओं को खंडित कर विशाल पर्वतीय घाटी से उतर रहा था कि दैवी प्रकोप हुआ मधुमक्खियों का एक बड़ा दल आक्रमणकारियों पर टूट पड़ा, इस घटना की स्मृति में वह स्थान आज भी भँवराथल के नाम से प्रसिद्ध है।
तनवगढ़ (त्रिभुवनगढ़), बयाना-
- इस दुर्ग का निर्माण बयाना के राजवंशीय तहणपाल अथवा त्रिभुवनपाल ने 11वीं शताब्दी ई. के उत्तरार्ध में करवाया था। दुर्ग निर्माता के नाम पर यह दुर्ग तवनगढ़ तथ किले वाली पहाड़ी त्रिभुवनगिरि कहलाती है।
- कांकवाड़ी का किला (गिरि व वन दुर्ग), अलवर-
- कांकवाड़ी दुर्ग अलवर में सरिस्का अभयारण्य के मध्य स्थित है। इसमें गिरि दुर्ग और वन दुर्ग दोनों की विशेषताएं हैं। इस दुर्ग का निर्माण आमेर जयपुर के कछवाहा वंशीय सवाई जयसिंह के द्वारा कराया गया।
शेरगढ़ दुर्ग, बारां-
- बारां जिले में स्थित कोषवर्धन पर्वत पर यह दुर्ग स्थित है। इस पर्वत शिखर के नाम पर ही इसका नाम कोषवर्धन था। शेरशाह सूरी ने मालवा अभियान (1542 ई.) के दौरान इस किले पर अधिकार कर इसका नाम शेरगढ़ रखा। शेरगढ़ दुर्ग परवन नदी के किनारे पर स्थित है।
- झाला जालिमसिंह ने शेरगढ़ का जीर्णोद्धार करवाया तथा किले के भीतर महल एवं अन्य भवन बनवाये जो कि वर्तमान में ‘झालाओं की हवेली’ के नाम से प्रसिद्ध है।
सोनारगढ़ (धान्वन दुर्ग) जैसलमेर-
- इस दुर्ग का निर्माण 1155 ई. में रावल जैसल भाटी ने करवाया था तथा रावल जैसल के पुत्र शालिवाहन द्वितीय ने जैसलमेर दुर्ग का अधिकांश निर्माण पूरा करवाया। यह दुर्ग ‘त्रिकूटाकृति’ का बना है तथा इस दुर्ग के चारों ओर विशाल मरूस्थल फैला हुआ है इस कारण यह दुर्ग ‘धान्वन’ दुर्ग की श्रेणी में आता है।
- इस दुर्ग के बारे में कहावत है कि ‘यहाँ पत्थर के पैर, लोहे का शरीर और काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुंचा जा सकता है।’
- यह दुर्ग बिना चुने का उपयोग किया गहरे पीले रंग के बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित है।
- इस दुर्ग के अंदर महारावल अखैसिंह द्वारा निर्मित सर्वोत्तम विलास (शीशमहल) तथा रंगमहल, मोती महल आदि दर्शनीय हैं।
- वर्तमान में राजस्थान में दो दुर्ग ही ऐसे हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोग निवास करते हैं उनमें से एक चित्तौड़ का दुर्ग तथा दूसरा जैसलमेर का दुर्ग है।
- दूर से देखने पर यह किला पहाड़ी पर लंगर डाले एक जहाज की तरह दिखाई देता है।
- इस दुर्ग के चारों ओर घघरानुमा परकोटा बना हुआ है जिसे ‘कमरकोट’ तथा ‘पाडा’ कहा जाता है।
- 99 बुर्जों वाला यह किला राजस्थान के स्थापत्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
भटनेर दुर्ग (धान्वन दुर्ग) हनुमानगढ़-
- घग्घर नदी के किनारे पर यह बसा यह किला हनुमानगढ़ में स्थित है। इस दुर्ग का निर्माण जैसलमेर के भाटी राजा भूपत ने 295 ई. में करवाया था। इस दुर्ग का नाम भूपत न अपने पिता की स्मृति में भटनेर रखा।
- महाराजा सूरत सिंह द्वारा मंगलवार के दिन किले पर अधिकार किए जाने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रखा गया।
- अपनी विशिष्ट और सामरिक महत्व के कारण भटनेर को अपने निर्माण के बाद से जितने प्रहार झेलने पड़े उतने भारत में शायद ही अन्य किसी दुर्ग को झेलने पड़े।
- तैमूर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में इस दुर्ग के बारे में यह लिखा है कि उसने इतना मजबूत और सुरक्षित दुर्ग पूरे हिन्दुस्तान में कहीं नहीं देखा।
पोकरण दुर्ग (धान्वन दुर्ग)-
- पोकरण (जैसलमेर) में लाल पत्थरों से निर्मित इस दुर्ग का निर्माण सन् 1550 ई. में राव मालदेव ने करवाया था।
अहिछत्रपुर दुर्ग (नागौर दुर्ग)-
- चौहान शासक कैमास द्वारा वि.सं. 1211 में इसका निर्माण करवाया गया था। यह दुर्ग दोहरे परकोटे से घिरा हुआ है।
- यह दुर्ग वीर अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथा के कारण इतिहास में विशेष स्थान रखता है।
- नागौर किले की यह विशेषता है कि किले के बारे से चलाये गये तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाये बिना ही ऊपर से निकल जाते थे।
चाँदी के गोले दागने वाला दुर्ग (चूरू का किला)-
- इस दुर्ग का निर्माण कुशाल सिंह ने सन् 1739 में करवाया था। 1857 के विद्रोह में ठाकुर शिवसिंह ने अंग्रेजों का विरोध किया जिसके परिणामस्वरूप अंग्रजों ने बीकानेर राज्य की सेना लेकर चूरू दुर्ग पर आक्रमण किया। चूरू दुर्ग में तोप के गोले समाप्त होने पर चाँदी के गोले शत्रु सेना पर चलाये गये।
चौमूं का किला (भूमि दुर्ग)-
- ठाकुर कर्णसिंह ने वि.सं. 1652-54 के आस-पास बेणीदास नामक संत के आशीर्वाद से इस दुर्ग की नींव रखी।
- इस दुर्ग को चौमुंहागढ़ तथा धाराधारगढ़ भी कहते हैं। वहीं ठाकुर रघुनाथसिंह के शासनकाल में इसे रघुनाथगढ़ भी कहा गया।
अकबर का दुर्ग (स्थल दुर्ग)-
- अकबर ने अजमेर शहरके मध्य में 1570 ई. में गुजरात विजय के उपलक्ष्य में इस दुर्ग का निर्माण करवाया।
- इस दुर्ग को ‘अकबर का दौलतखाना’ और ‘अकबर की मैगजीन’ के नाम से भी जाना जाता है।
- यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो पूर्णतया मुस्लिम दुर्ग स्थापत्य पद्धति से बनवाया गया है। अकबर द्वारा हल्दीघाटी युद्ध की योजना को अंतिम रूप इसी किले में दिया गया था।
- 1801 ई. में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैग्जीन) बना लिया।
लालगढ़ दुर्ग (बीकानेर)-
- इस दुर्ग की नींव महाराजा रायसिंह ने 1589 ई. में रखी थी। इस दुर्ग की प्राचीर व अधिकतर निर्माण कार्य लाल पत्थरों से हुआ है इसलिए इसे लालगढ़ भी कहा जाता है।
- इस दुर्ग को जूनागढ़ भी कहते हैं तथा यह दुर्ग मरू दुर्ग, धान्वन व भूमि दुर्ग की श्रेणी में आता है। इस दुर्ग की आकृति चतुष्कोण या चतुर्भुजाकृति का है।
- रतन निवास, रंग महल, कर्ण महल, लाल निवास, सरदार निवास, चीनी बुर्ज, सुनहरी बुर्ज, विक्रम विलास, सूरत निवास, मोती महल व जालीदार बारहदारियां आदि दर्शनीय हैं।
- जूनागढ़ का यह दुर्ग समन्वित संस्कृति का प्रतीक है क्योंकि इसके निर्माण में हिन्दू और मुस्लिम कला शैलियों का सुंदर समन्वय हुआ है।
- इस दुर्ग के प्रांगण में दुर्लभ प्राचीन वस्तुओं, फारसी व संस्कृत में लिखे हस्तलिखित ग्रंथों का समृद्ध संग्रहालय स्थित है।
लोहागढ़ (पारिख व भूमि दुर्ग), भरतपुर-
- भरतपुर नगर में स्थित लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण जाट शासक सूरजमल द्वारा करवाया गया। लोहागढ़ का यह दुर्ग दोहरी प्राचीर से घिरा हुआ है।
- इस दुर्ग का प्रवेश द्वार अष्टधातुओं के मिश्रण से निर्मित है। यह दरवाजा महाराजा जवाहरसिंह (1765 ई.) ने मुगलों के शाही खजाने की लूट के समय लाल किले से उतार कर लाये थे।
- इस दुर्ग में निर्माण कार्य राजा जसवंतसिंह (1853-93 ई.) के काल तक चलता रहा।
- यहाँ बनी 8 बुर्जों में से जवाहर बुर्ज सबसे प्रमुख है जिसे महाराजा जवाहरसिंह की दिल्ली फतह के स्मारक के रूप में बनाया गया था।
- यह दुर्ग मैदानी दुर्गों की श्रेणी में विश्व में प्रथम स्थान पर है।
- 17 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद्घाटन समारोह भी इसी दुर्ग के महलों में हुआ था।
राज्य के अन्य दुर्ग
- कुचामन दुर्ग- नागौर जिले के कुचामन में स्थित यह एक गिरि दुर्ग है। इसका निर्माण मेड़तिया शासक जालिमसिंह ने करवाया था। इस दुर्ग को ‘सामन्ती दुर्गों का सिरमौर’ कहा जाता है।
- नाहरगढ़, बारां- लाल पत्थरों से निर्मित इस दुर्ग की आकृति दिल्ली के लाल किले के समान है।
- भूमगढ़/अमीरगढ़- 17वीं शताब्दी में भोला नामक ब्राह्मण ने भूमगढ़ (टोंक) का निर्माण करवाया था।
- सज्जनगढ़ दुर्ग, उदयपुर- यह दुर्ग उदयपुर की बाँसदरा पहाडिय़ों पर निर्मित है। इस दुर्ग का निर्माण मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह ने करवाया था। यह दुर्ग ‘उदयपुर का मुकुटमणि’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- नीमराणा का किला, अलवर- ह्ययह महल पंच महल के नाम से भी विख्यात हे।
- टॉडगढ़, अजमेर- अजमेर जिले में स्थित इस दुर्ग का निर्माण कर्नल जेम्स टॉड ने करवाया था इसलिए यह टॉडगढ़ के नाम से जाना जाता है।
- सोजत दुर्ग- यह दुर्ग ‘नानी सीरड़ी’ (पाली) नाम स्थान पर स्थित है।
- भानगढ़ का किला, अलवर- आमेर के कच्छवाहा शासक भगवन्त दास ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया।
- फतेहपुर दुर्ग- यह शेखावाटी का सबसे महत्वपूर्ण दुर्ग है। इस दुर्ग का निर्माण सन् 1453 में फतनखाँ कायमखानी मुसलमान द्वारा करवाया गया। इस दुर्ग के भीतर ‘तेलिन का महल’ स्थित है।
- गीजगढ़ का किला, दौसा- यह किला नाव या जहाज की आकृतिनुमा स्वरूप में निर्मित है।
- माधोराजपुरा का किला, जयपुर- इस दुर्ग का निर्माण जयपुरके महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मराठा विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।
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Bhalo
ReplyDeleteShandar 👍
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