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Showing posts from July, 2021

badminton defense

सिलबट्टा

70% बीमारियों से बचना है तो घर की #चक्की का आटा और #सिल_बट्टे पर पिसे #मसाले और #चटनी खाएं #रोटी #सब्जी को संस्कारित रूप में तैयार करने की दिशा ने मानव की पहली खोज रही : सल्ला लोढ़ी।शिला, सिलोटु, सिल्वाटु, सिळवाटू, सिलौटा, सिलोटी, सिला लोढ़ी या सिलबट्टा......चटनी या मसालों को पीसने की इस पारंपरिक 'मशीन' से हर कोई परिचित होंगा। अब भी कई घरों में इसका उपयोग किया जाता है. सिलबट्टा यानि पत्थर का ऐसा छोटा चोकौर या लंबा टुकड़ा जिससे मसाला आदि पीसा जाता है. सिल और पीसने का लोढ़ा. जो बड़ी सिल होती है उसे सिलौटा और जो छोटी सिल होती है उसे सिलोटी कहा जाता है.  सिल और बट्टा होते अलग अलग हैं लेकिन एक के बिना दूसरे का कोई वजूद नहीं है. सिल जमीन पर रखा पत्थर जिस पर बट्टे से अनाज पीसा जाता है. #मिस्र की पुरानी सभ्यताओं में जो सिल मिला था वह बीच में थोड़ा दबा हुआ है। आज भी सिल का बीच का हिस्सा मामूली गहरा होता है. बट्टे को दोनों हाथों से पकड़कर और घुटनों के बल बैठकर सिल पर अनाज या मसाले पीसे जाते हैं. सिलोटु में पीसे गये मसालों से सब्जी का स्वाद ही बदल जाता है और यह भोजन स्वास्थ्य के

कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र वालों पर काम करेगा कोविड-19 का टीका?

  कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र वालों पर काम करेगा कोविड - 19 का टीका ? अगर किसी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है तो क्या कोविड - 19 का टीका उस पर प्रभावी होगा ? अगर किसी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है तो क्या कोविड - 19 का टीका उसपर प्रभावी होगा ? संभवत : उतना नहीं जितना किसी सेहतमंद इंसान पर होगा लेकिन टीके कुछ हद तक सुरक्षा तो प्रदान करते ही हैं . इसीलिए बीमारी या कुछ दवाओं के चलते कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों को भी टीका लगवाने की सलाह दी जाती है . यह आवश्यक है कि आपका परिवार , दोस्त और देखभालकर्ताओं को टीका लगा हो जो उनके माध्यम से वायरस का प्रसार होने की आशंका को कम करता है .   करीब तीन प्रतिशत अमेरिकी वयस्कों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है . इनमें एचआईवी या एड्स से ग्रसित लोग , ऐसे लोग जिनमें किसी प्रकार का प्रतिरोपण किया गया हो , कैंसर के कुछ मरीज और रयूमेटोइड अर्थराइटिस ( गठिया ) , आंतों में सूजन की बीमारी और ल्यूपस जैसे स्व - प्रतिरक्षित

क्या बेटियां अपने बाप पर बोझ होती है?

  क्या बेटियां अपने बाप पर बोझ होती है ? इस तस्वीर को तो देख का नही लगता कि लड़कियां बोझ होती है। राजस्थान   के   हनुमानगढ़   जिले   के   रावतसर   की   तीन सगी   बहनों ने एक साथ   आरएएस अफसर   बनकर   इतिहास रच   दिया है जबकि   दो बहनें   पहले हो चुकी हैं   चयनित ।   राजस्थान प्रशासनिक सेवा   में तीनों ही बहनें एक साथ बैठी थीं और अब   एक साथ   पास   भी हुई हैं। R.A.S.   में चयन होने वाली इन तीनों बहनों का कहना है की यह सब उनके माता पिता की मेहनत का नतीजा है की हम आज इस मुकाम तक पहुची है.   बता दें कि एक बहन   मंजू   का 2012 में राज्य प्रशासनिक सेवा में   सहकारिता विभाग   में चयन हुआ था। जबकि सबसे पहली बहन   रोमा   का 2011 में हो चुका है। अब   तीन   और   बहनें   भी   आरएएस   बनी है। सोशल मीडिया पर इन बहनों के   चर्चे   हैं। अपनी   मेहनत   और   काबिलियत   के दम पर इन बहनों ने साबित कर दिया   बोझ नहीं वरदान   हैं   बेटियां ।