राजस्थान में दुर्ग स्थापत्य कला राजस्थान किलों का प्रदेश है जहाँ प्रत्येक नगर और कस्बे में किलों व गढ़ों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। सम्पूर्ण देश में माहराष्ट्र व मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में सर्वाधिक दुर्ग मिलते हैं। यहाँ राजाओं , सामन्तों ने अपने निवास के लिए सुरक्षा के लिए , सामग्री संग्रहण के लिए , आक्रमण के समय अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने के लिए पशु-धन बचाने के लिए तथा संपत्ति को छिपाने के लिए दुर्ग बनवाये। दुर्ग निर्माण में राजस्थान के शासकों ने भारतीय दुर्ग-निर्माण कला की परम्परा का निर्वाह किया था। अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अलग-अलग दुर्गों का निर्माण किया जाता है। शुक्र नीति में राज्य के सात महत्वपूर्ण अंगों में दुर्ग स्थापत्य को एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। शुक्र नीति में नौ तरह के दुर्ग- एरण , पारिख , पारिध , वन दुर्ग , धन्व दुर्ग , जल दुर्ग , गिरि दुर्ग , सैन्य दुर्ग तथा सहाय दुर्ग बताये गये हैं। राज्य में उक्त सभी प्रकार के दुर्ग अवस्थित हैं जो कि निम्न हैं- गिरि दुर्ग - वह दुर्ग जो किसी उच्च गिरि (पर्वत) पर स्थित होता है। मेहरानगढ़ (जोधपुर) , चित्तौड़